*जैसा ढाल दिया जाता है बचपन में*
पूरे जीवन के लिए, हम में से अधिकतर लोग;
ढल जाते हैं;
जैसा हमें ढाल दिया जाता है बचपन में।
इस तरह हमारा आंतरिक रूप निश्चित हो जाता है;
क्योंकि अधिकांशतः हम प्रश्न खड़े करते नहीं उस पर;
जो सिखा दिया जाता है बचपन में।
गहरे में हम में से अधिकतर लोग;
ढल जाते हैं;
जैसा हमें ढाला जाता है आस्था के नाम पर;
अधिकांशतः हम प्रश्न खड़े करते नहीं उस पर;
जो सिखाया जाता है आस्था के नाम पर;
विशेषकर जब प्रश्न पूछना मना हो आस्था के नाम पर।
यदि अ-मानवीयता को आस्था के नाम पर सिखया जाए बचपन में;
तो हो जाता है - करेला जो चढ़ा है नीम पर;
और फिर चढ़ा रहता है पूरे जीवन भर।।
पूरा समुदाय ही, सदा-सदा के लिए, करेला बन चढ़ा रहता है नीम पर;
यदि समुदाय में यह व्यवस्था चलती रहे निरन्तर;
आस्था के नाम पर।।
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